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Friday 6 November 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा  

बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून 

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन 

2212  1212 


चरचा हे छोर-छोर मा। 

काबर लुकाये कोर मा।  


सब ला लुभा सकत हवस। 

गुण हा भरे हे तोर मा।


खटिया धरे बबा हवय। 

दादी उँघाय खोर मा।  


निदिया कहाँ ले आय जी। 

माथा पिरागे शोर मा।  


सुन के अकल ह आ जथे। 

बदलाव देख चोर मा।  


रोवय नही ओ साग बर।

तन तन खवाय झोर मा। 


कइसे मया मिले "दिलीप"

दिल नइ हवय कठोर मा। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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