*गज़ल --आशा देशमुख*
*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*
*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*
*2212 2212 2212 2212*
आगी धरे पानी धरे जग भीतरी बानी चले।
बइला लगाए टोप ला घूमे रहट घानी चले।
राजा चढ़े हे पालकी मा अउ धरे तलवार ला
संसार भर के भाव गुण लेके धरे ज्ञानी चले।
नानुक रहे गोटी भले पानी डूबा देथे तभो
कतको गरू सामान धर सागर म जलरानी चले।
पउँरी जरे हे घाम मा तन हा ठिठुरथे जाड़ मा
दिनरात के घेरा बने सुख दुख म जिनगानी चले।
धन मान ला चिंता धरे बइठे हवे पोटार के
जग बर सबो सुख ला लुटाके चैन से दानी चले।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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