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Friday 6 November 2020

ग़ज़ल - मनीराम साहू

 ग़ज़ल - मनीराम साहू


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून

मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन

2212  1212


बनकत अपन‌ बना‌ तहूॅ।

रोजे परब मना तहूॅ।


हिजगा लगा कमाय बर,

रुपिया कमा गना तहूॅ।


राखे हवच सकेल धन,

तरिया कुआॅ खना तहूॅ।


छॅइहा बइठ बघार झन,

चिटको घमा रना तहूॅ।


ठाहिल‌ रहे चटख जबे,

जइसे रबर तना‌ तहूॅ।


परहित नफा हवय अबड़,

शिवि कस कभू चना तहूॅ।


लदबद‌ मया मितान‌ के,

मिलके बने सना तहूॅ।


- मनीराम साहू मितान

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