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Sunday, 29 November 2020

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन 


2212  2212  2212  


सब जान के अंजान काबर तँय बने। 

रेते नरी बइमान काबर तँय बने। 


करनी सबो हे तोर हमला हे पता। 

सिधवा असन नादान काबर तँय बने। 


मनखे बने जानत रहे हन हम सदा। 

लालच म आ हैवान काबर तँय बने। 


नइ हे कका ताकत तनिक भी देह मा। 

तलवार धर सुलतान काबर तँय बने। 


खोजत रथे तोला सिपाही मन सदा।

सब चोर के पहिचान काबर तँय बने। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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