गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
छत्तीसगढ़ के नाम ऊँचा कर बने मन ठान के।
छलकत रहे सुख संपदा निस दिन कटोरा धान के।
भुइँया इही गुरु संत के बानी कबीरा दास जी
सत जोत गुरु घासी जलाये राह दे गुरुज्ञान के।
तिवरा चना गेहूँ उगे सरसो सुहावन खेत मा
भंडार लोहा सोन चाँदी हे खनिज सुख खान के।
पंथी सुवा करमा ददरिया गीत नाचा नीक हे
होरी हरेली अउ दिवाली हे परब पहिचान के।
पात्रे कहे मिलके बढ़ौ छत्तीसगढ़ के मान बर।
कोनों दिखावय आँख गर तब मार झापड़ तान के।
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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