गजल-दिलीप कुमार वर्मा
बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22
गाँव के गाँव शहर होवत हे।
देख के खार तको रोवत हे।
कारखाना बने धनहा डोली।
आज माटी तको गुण खोवत हे।
गैस चूल्हा म बनत हे रोटी।
आज अँगरा म कहाँ पोवत हे।
बोल गुरतुर ओ मया के खोगे।
बात मा लोग जहर मोवत हे।
आज अपराध घरो घर होवय।
देख भगवान तको सोवत हे।
रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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