गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून
मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन
2212 1212
पैरी बजा रिझात हे।
मोला उहाँ बलात हे।
कर के श्रृंगार देख ले।
ओ मोर तिर म आत हे।
गजरा लगा के बाल मा।
खोपा बने सजात हे।
काजर अँजाय आँख मा।
छतिया हमर कटात हे।
लाली लगाय होठ ओ।
लगथे गुलाब खात हे।
झुमका झुला के कान मा।
संगीत गुनगुनात हे।
चुटकी चुटुक बजाइ के।
झट ले भगाये जात हे।
रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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