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Friday 6 November 2020

गज़ल -चोवा राम 'बादल*

 *गज़ल -चोवा राम 'बादल*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*


आधा अधूरा आस हे आधा अधूरा जिंदगी

रिश्ता के डोरी टूटगे अउ टूट  गे हे पालकी


काहत रहिस हे गीत गाना राग धरके प्यार के

का प्यार सिरतो सार हे वोमा हवै काबर ठगी


कालेज के लहुटत ले बेटी हा अबड़ डर्रात हे

मनखें सड़क मा हें तभो हिरदे मा हाबय धुकधुकी


इंसान हा इंसानियत के पा जही जे दिन मरम 

सचमुच उही दिन हो जही वोकर सफल गा बंदगी


झूठा निकलथे बाद मा वादा करे खाये कसम

विश्वास होवय अब नहीं लागथे बस दिल्लगी


संस्कार के सब नाश कर दिस आधुनिक औलाद हा

वो बाप ला कहिथे नमस्ते नइ करै जी पै लगी


हे नाथ किरपा कर कभू माँगत हववँ पइँया परे

झट जर जवय 'बादल' के अंतस मा समाये गंदगी



चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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