गजल- दिलीप कुमार वर्मा
*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
हमरो बदलही भाग हर अइसन समय आवत हवय।
सन्देश ले आये हवा मन मोर लहरावत हवय।
मौसम बदल गे देख ले परिवेश तक सुग्घर लगे।
आ के चिरइया आँगना संगीत मा गावत हवय।
हरियाय हे धरती गगन नदिया तको मुस्कात हे।
बादर गरज बिजुरी चमक अब देख इठलावत हवय।
रतिहा चमक के चाँद हर अँधियार मेंटत आज हे।
दिन मा सुरुज ऊर्जा भरे चहुँ ओर दमकावत हवय।
सागर हिलोरा मार के आकाश छूना चाहथे।
जेमन पसीना गार थे मंजिल उही पावत हवय।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment