गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222. 122
बने बेरा कहूँ कोती नइ दिखे।
छँटे घेरा कहूँ कोती नइ दिखे।
हे हाँवे हाँव चारो खूँट अड़बड़।
खुशी डेरा कहूँ कोती नइ दिखे।
बगइचा बाग बर आँखी तरस गे।
फरे केरा कहूँ कोती नइ दिखे।
बबा ना डोकरी दाई के आरो।
घुमत ढेरा कहूँ कोती नइ दिखे।
लुवागे अउ मिंजागे धान तभ्भो।
गँजे पेरा कहूँ कोती नइ दिखे।
सँझा बिहना भजन गावत भगत के।
लगत फेरा कहूँ कोती नइ दिखे।
मैं मेरा के जमाना मा अब तो।
तैं तेरा कहूँ कोती नइ दिखे।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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