गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे रमल मुरब्बा सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122
आँसू ला बरसात कइहँव।
केस कारी रात कइहँव।
मँय लबारी मार ओला।
कुछ मया के बात कइहँव।
रूप चंदा कस दिखत हे।
आज तरिया जात कइहँव।
संगमरमर कस दमक गे।
देख वापिस आत कइहँव।
रेंग झन कातिल अदा दे।
हे कमर बलखात कइहँव।
तीर छाती मा लगत हे।
देख झन मुस्कात कइहँव।
तोर आँखी देख गोरी।
हे अजब हालात कइहँव।
होठ मा हे रस भराये।
बात गाना गात कइहँव।
पट जही मोला पता हे।
अब बता का बात कइहँव।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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