गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे रमल मुरब्बा सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122
नाव नदिया मा चला ले।
संग तँय मोला बला ले।
पा जबे कुछ दाम संगी।
तन अपन थोरिक गला ले।
जाड़ बाढ़े हे बहुत जी।
तापे बर भुर्री जला ले।
सूख गे हे खेत जम्मो।
अब तनिक पानी पला ले।
फोर देथे बेंदरा हर।
टोर छानी छत ढला ले।
रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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