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Thursday 24 December 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 


1222  1222  122 

 

गरी खेले गुथे चारा निहारय। 

खड़े टूरा सबो पारा निहारय।  


खुसरना हे कलेचुप जेन घर मा। 

गये पाछू डहर ब्यारा निहारय। 


रहे मन डर समाये साँप हे का। 

जला के टार्च दोबारा निहारय। 


अमर जोही रहय कहिके दुल्हनिया।

बिदाई बेर ध्रुव तारा निहारय। 


सुखाये खेत चिंता मा किसनहा। 

ढिलाये बांध के धारा निहारय। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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