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Friday, 25 December 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222  122 


बिहनिया ले चिरइया गीत गावय 

सुने जे कान तेखर मन लुभावय।  


पहुँचथे जेन नदिया तिर बिहानी।

उही हर गीत के आनन्द पावय। 


गधा घोड़ा तको मा फर्क नइ हे। 

समे पाये सबो गंगा नहावय। 


पता जब हे इहाँ हे शेर माड़ा। 

बता कब मेमना नज़दीक जावय।  


रखाये नागमणि नागिन करा हे। 

लगा के दाँव जीवन कोन लावय।


ठिठुरथे जाड़ बरसा मा फिलत हे।

मगर ये बेंदरा कब छाँव छावय। 


सुते रहिथे हमेसा देख अजगर। 

भरे तन हे न जाने काय खावय। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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