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Friday, 18 December 2020

ग़जल--चोवा राम 'बादल'*

 *ग़जल--चोवा राम 'बादल'*


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*

फा़इलातुन फा़इलातुन फा़इलातुन फा़इलातुन


2122 2122 2122 2122


मौन अक्षर मा तको बड़ गर्जना ललकार होथे

काट देते क्रूरता ला जे कलम मा धार होथे 


 दोष किस्मत मा लगाके रोते रहिथे आलसी हा

 मेहनत पतवार के बल जिनगी नैया पार होथे 


 दीन हे ते काय होगे जीत जाही एक दिन वो 

सत्य के झंडा फहरथे झूठ के तो हार होथे


 एकता के मोल जानौ एकता के मंत्र फूँकौ

 जुरके अँगरी मुटका बनथे जोर से तब वार होथे


 देख संगी टोरबे झन हे अबड़ अनमोल जेहा

 पूजा के धागा सही निर्मल मया के तार होथे


पुरखा मन हावयँ बताये चीख के अनुभव के गोली

 करु कसा अउ मीठ चुरपुर कतको हा सख्खार होथे


  हे नजर के फेर 'बादल' अउ  नजरिया के बदलना 

देखबे वो दिखही वइसे सोच मा संस्कार होथे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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