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Thursday, 17 December 2020

ग़ज़ल--आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल--आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*


*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*


*2122 2122 2122 2122*



तोर मन तलवार बइहा मँय मया के धार लिखथंव

तैं धरे धन के तिजोरी मँय भरे परिवार लिखथंव।1


नींद में ललचाय आँखी कार बंगला मान पदवी

तेँ कहे कुरसी सुघर हे मँय सदा बनिहार लिखथंव।2



पाँव मा कालीन बिछ्थे हाथ मोबाइल धरे हे

तेँ कहे गुलदान रखदव मँय इहाँ औज़ार लिखथंव।3


स्वार्थ के आँधी चलत हे पेड़ डाली टूट जाथे

तेँ कहे भरबो अपन घर मँय दया उपकार लिखथंव।4


रोग राई फैल गे हे ठौर नइहे अब  दया बर

तेँ गुणा धन भाग करथस मँय दवा उपचार लिखथंव।5


बंट गए हे घर दुवारी कोठ रुंधना मा खंड़ागे

तैं गए गमला बिसाये मँय ह गहदे नार लिखथंव।6


हे अबड़ अंतर दुनो मा जान धरती अउ अकाशा

तेँ कुआं के मेचका अउ मँय सरी  संसार लिखथंव।7



आशा देशमुख

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