Total Pageviews

Friday, 25 December 2020

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222 1222 122


भुला मैं मोर बनही गा बनौकी।

मया धन जोर बनही गा बनौकी।


मरय दरबार लबरा के मुहू हा,

बँधा सच डोर बनही गा बनौकी।


कमाये हे अबड़ के जस ददा हा,

बढ़ा, झन बोर बनही गा बनौकी।


जलन ला छोड़ के देबे पँदोली,

जगत मा तोर बनही गा बनौकी।


हवय जे हीन तैं संगी बनाले,

करत रहि सोर बनही गा बनौकी।


हवय वो छोट ढेकाना फलाना,

भरम सब टोर बनही गा बनौकी।


कहाना हे मनी चोट्टा कहूँ जी,

कहा दिल चोर बनही गा बनौकी।


- मनीराम साहू 'मितान'

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...