गजल-दिलीप कुमार वर्मा
बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212
बरसात मा बखरी बने हरिया जथे।
लौकी तरोई नार मखना छा जथे।
रमकेलिया खीरा करेला चेंच अउ।
भाजी घरो घर साग बन के आ जथे।
जब आय जाड़ा तब लगे गोभी भटा।
बंधी मुराई गाँठ सब ला भा जथे।
दुश्मन तको अबड़े हवय ये साग के।
आ बेंदरा गरुवा किरा सब खा जथे।
रखवार बन देखत रहे दिन रात जे।
मिहनत करे ते दाम अच्छा पा जथे।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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