गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
उठे ला अउ उठाना चाहथस ना।
दबे ला अउ दबाना चाहथस ना।
करेस आँखी मुँदे अब्बड़ करम कांड।
अपन मुँह अब लुकाना चाहथस ना।
लबारी तोर तो तोपात नइहे।
सही ला तैं छुपाना चाहथस ना।
धरे जल मीठ बढ़त हस नदी कस।
समुंदर मा तैं समाना चाहथस ना।
करत हस फोकटे फोकट तैं तारीफ।
अपन बूता बनाना चाहथस ना।
मिही दे हँव गरी बर चारा तोला।
मुँही ला अब फँसाना चाहथस ना।
अबड़ मुश्किल हवे सत के डहर हा
सही मा तन तपाना चाहथस ना।
निकल गे तोर बूता काम अब ता।
समझ पासा ढुलाना चाहथस ना।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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