गज़ल - अजय अमृतांशु
बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122
घात बेरा होगे रोवत हस बता का बात हावय।
भीतरे भीतर ये गम हा तोला काबर खात हावय।
चारों कोती हे दिखावा के जमाना काला कहिबे।
जेन सरगम तक ना जानै वोहा भारी गात हावय।
सुख मा सुरता नइ करे सिरतो बता भगवान ला तैं।
पालही अब कोन तोला दुख के बादर छात हावय।
देख के दूसर के दुख ला नइ पसीजे हे करेजा।
आज वोकर भाग मा बस आँसू के बरसात हावय।
बहगे हे जम्मो फसल हा आँसों के बरसात मा अब।
अन्नदाता का करय जब भाग करिया रात हावय।
संग जीबों संग मरबों नइ जुदा होवन कभू हम।
तोर सुरता आज बैरी घेरी बेरी आत हावय।
नइ रहय दुख हा "अजय" जीवन मा आथे जाथे येहा।
आही तोरो दिन बने अब फूल तक मुस्कात हावय।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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