गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122
पाप के गगरी भरे का, छेदरा हावै तरी मा।
पुण्य दरदर खाय ठोकर, डार के डोरी नरी मा।
खुद ला पीना हे तभो ले, खुद ला जीना हे तभो ले।
आज देखव मनखे मन, घोरे जहर पानी फरी मा।
ना गियानी ना धियानी, बेंदरा जइसे हे मुँहरन।
मानते नइहे टुरा हा, जान अटके हे परी मा।
लौट के आबे तैं दुच्छा,बन शिकारी बन मा झन जा।
जान ले चारा के बिन अब, नइ फँसे मछरी गरी मा।
काम ना संजीवनी दे , प्राण लक्ष्मण हा गँवाये।
कंस रावण जी उठत हे , पेड़ पत्ता अउ जरी मा।
बीत गे सावन घलो हा, बिन झड़ी के का बतावौं।
रदरदारद बरसे पानी, दाई के रखिया बरी मा।
हाँड़ी हँड़िया नइ सुहावै, नइ सुहावै घर के भाजी।
सब भुलाये ढाबा होटल, मास मद अंडा करी मा।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छग)
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