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Monday, 21 December 2020

ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'

 एमा मोर ले गलती होय हे जेला सुधारत हॅव।

ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


मीठ बर आगू सबो करुहा खवइया नइ मिलय जी।

छाँव‌ चाही घाम मा पर रुख लगइया नइ मिलय जी।


स्वार्थ मा करथें मया सब पाँव‌ परथें काम हे तब,

मानथें रिश्ता बना के पर निभइया नइ मिलय जी।


कोन ला संसो इहाँ हे बाँच जय तरिया कुआँ हा,

पाट देहीं डार कचरा पर खनइया नइ मिलय जी।


गाय किंंजरत हें सड़क मा रोज रेता के मरत हें,

दूध घी चाही दही पर रख पलइया नइ मिलय जी।


हे खजाना ज्ञान के बड़ गीत कविता लेख कहिनी,

मेहनत ले बड़ लिखत हें पर पढ़इया नइ मिलय जी।


मूँद लेथें नैन झट ले देखथें अति ला तभो जी,

नीत खाती आज जग मा अब लड़इया नइ मिलय जी।


छोट आँखी के हवँय बड़ नइ गुनत हें माँ बहिन‌ ला,

गुन मनी लुगरा बढ़ा इज्जत बचइया नइ मिलय जी।


- मनीराम साहू 'मितान'


🙏🙏🙏

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