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Friday 25 December 2020

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 

 

सही मा नइ पता का भूल होगे।

मया के फुलवा कइसे शूल होगे।


करम मा मोर नइहे पथ बरोबर।

कभू चढ़ ता कभू बड़ ढूल होगे।


जुड़े कइसे हमर मन हा बता तैं।

मया के टुटहा अब तो पूल होगे।


मया के बिरवा झट जोरंग जाही।

निचट कमजोर अब तो मूल होगे।


महकही अउ कतिक दिन मोर तन मन।

मया टूटे पड़े अब फूल होगे।


जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

बाल्को, कोरबा(छग)

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