*ग़ज़ल --आशा देशमुख*
*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*
*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*
*1222 1222 122*
मया मा बेंदरी हा हूर लागे
दिखे बिरबिट सहीं हा नूर लागे।
भले नइहे अबड़ धन धान पइसा
सुमत से घर भरे भरपूर लागे।
हवय कालिख बरोबर आज दाहिज
ददा हा धन बिना मजबूर लागे।
सुखी संतोष के अब्बड़ तरीका
गिरे महुआ घलो अंगूर लागे।
रखे हे स्वाद दुनिया मा मसाला
कहूँ चुरपुर कहूँ अमचूर लागे।
आशा देशमुख
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