गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
जवानी मा बुढापा आय संगी।
सफेदी बाल पूरा छाय संगी।
बिहा पहिली सफा चट हे मुड़ी हर।
कहाँ टूरी भला अब भाय संगी।
जवानी मा करे हे काम उलटा।
बुढापा आय अब पछताय संगी।
उमर ढल गे मिलिस नइ एक टूरी।
मिलिस बुढ़िया तभो अपनाय संगी।
बिगड़ गे बात का करही बिचारा।
सबो के बात सुन खखवाय संगी।
बियाये बर बियादिस सात लइका।
सबो झन बाप ला गिंधियाय संगी।
करे सिंगार टूरी मटमटावय।
दिखा के रूप वो भरमाय संगी।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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