गज़ल-अजय अमृतांशु
*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*
*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*
*2122 2122*
राम भजले सार हावय।
बाकी सब बेकार हावय।
देश आघू कइसे बढ़ही
नेता मन गद्दार हावय।
का जमाना आ गे भैया
शिक्षा अब व्यापार हावय।
गुरु के महिमा होथे भारी।
ज्ञान के भंडार हावय।
नेता के दर्शन कहाँ अब ।
जनता तो लाचार हावय।
जीतही जी एक दिन वो।
आज जेकर हार हावय।
प्यास सब जल्दी बुझा लव।
नदिया मा अब धार हावय।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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