Total Pageviews

Tuesday 15 December 2020

गज़ल - अजय अमृतांशु

 गज़ल - अजय अमृतांशु


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


भाग मा संघर्ष हावय झन कभू आराम करबे।

खूब करके मेहनत तँय जग मा सुग्घर नाम करबे। 


तोर सो दाई ददा हे रुप हवय भगवान के जी।

सेवा करबे मन लगा के घर ल चारो धाम करबे ।


बैर रख के जीना संगी येहू कोनो जीना हावय।

टूट जावय घर ह भाई झन तें अइसन काम करबे।


बड़बड़ाना कुछ के आदत होथे सिरतो फालतू के

सार कहना ठीक होथे बात झन तँय लाम करबे ।


दिन हवय खेती किसानी के चलव करना हवय जी 

मुँधरहा ले खेत जाबों जादा झन तँय घाम करबे ।


साँझ के पंछी घलो आथे अपन जी खोंधरा मा।

बेरा बूड़त हे पहुँच जा घर अजय झन शाम करबे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...