गज़ल - अजय अमृतांशु
बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122
भाग मा संघर्ष हावय झन कभू आराम करबे।
खूब करके मेहनत तँय जग मा सुग्घर नाम करबे।
तोर सो दाई ददा हे रुप हवय भगवान के जी।
सेवा करबे मन लगा के घर ल चारो धाम करबे ।
बैर रख के जीना संगी येहू कोनो जीना हावय।
टूट जावय घर ह भाई झन तें अइसन काम करबे।
बड़बड़ाना कुछ के आदत होथे सिरतो फालतू के
सार कहना ठीक होथे बात झन तँय लाम करबे ।
दिन हवय खेती किसानी के चलव करना हवय जी
मुँधरहा ले खेत जाबों जादा झन तँय घाम करबे ।
साँझ के पंछी घलो आथे अपन जी खोंधरा मा।
बेरा बूड़त हे पहुँच जा घर अजय झन शाम करबे।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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