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Thursday, 24 December 2020

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*


1222   1222    122


खिरत हावय किसानी कोन करही। 

कृषक करजा म दबगे कोन भरही। 


चलिन गंगा नहाये नेता मन हा।

बतावा देश ला अब कोन चरही।


तरसथे बूँद बर प्यासे हे मनखे।

नदी के झरना बनके कोन झरही।


बुतावत हावै अब दीया सुमत के। 

मया के बाती बन के कोन बरही।


कहाँ कोनो फिकर हे देश के अब ।

भगतसिंह बनके फाँसी कोन चढ़ही।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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