ग़ज़ल--इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122
जन भलाई हे कहाँ अब मतलबी संसार होगे।
झूठ इरखा द्वेष मा इंसान अब मतवार होगे।
गाँव घर अँगना गली मा कोंन लावय भोर सुमता
प्रेम सुख बाती बिना दीया तले अँधियार होगे।
आजकल मनखे ल मनखे साँप बन के नित डसत हे
विष भरागे बात मा विस्वास मा गद्दार होगे।
घूस महँगाई गरीबी हा बढ़त हे बड़ दिनों दिन
आम जनता कौंर सुख पाये इहाँ लाचार होगे।
जाति मजहब मा पड़े हम दूर धंधा से गजानंद
अउ इहाँ चारों डहर परदेशिया व्यापार होगे।
*इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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