गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे रमल मुरब्बा सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122
रोज चुगली तँय करत हस।
पाप के कोठी भरत हस।
लोग देवत बतदुआ हे।
देख ले तिल-तिल मरत हस।
हाड़ बाँचे देह मा बस।
पेंड़ पाना कस झरत हस।
पा गये हस हक अपन ला।
फेर तँय हर नइ टरत हस।
हो गये कुटहा बरोबर।
काखरो ले नइ डरत हस।
खात हमरे छीन के अउ।
मूंग छाती मा दरत हस।
तोर मन लालच हमाये।
घर भरे तब ले धरत हस।
रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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