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Sunday 27 December 2020

ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" *बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

 ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


आगाज से मतलब नही अंजाम चाही बने।

हाँ काम से मतलब नही परिणाम चाही बने।1


सूरज लुकाये रोज के गरमी घरी मा भले।

सरदी समय घर अंगना मा घाम चाही बने।2


देवय दरद दूसर ला बेपरवाह होके जौने।

पीरा भगाये बर उहू ला बाम चाही बने।3


बिन शोर अउ संदेश के तरसे घलो कान अब।

मन मा खुशी भर दै तिसन पैगाम चाही बने।4


आफत बुला झन रात दिन करके हटर हाय तैं।

जिनगी जिये बर जान ले आराम चाही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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