गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे हजज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
अपन मनके चलइया सब हवय गा
कमाना नइ खवइया सब हवय गा
नँदावत रीति अउ संस्कार भाई
निभइया नइ बतइया सब हवय गा
चलौ मिल बाँटके खाबो तो कहितिन
कहाँ पाबे लुटइया सब हवय गा
सुघर लिख रचना कतको कोन पढ़थे
पढ़इया नइ लिखइया सब हवय गा
तुहँर सब माँग पूरा 'ज्ञानु' करबो
करइया नइ कहइया सब हवय गा
ज्ञानु
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