छत्तीसगढ़ी गजल-दुर्गा शंकर इजारदार
बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122
आज लुच्चा अउ लफंगा मन के देखव राज हावय ,
बेंदरा मन के मुड़ी मा तो सजे जी ताज हावय ।1।
बाप बेटा संग बइठे आज पीयत हे रे दारू,
काकरो तो अंग मा चिटको कहाँ रे लाज हावय ।2।
छोड़ दे निर्मल कया पानी मिले के आस ला गा,
सरहा मछरी संग मा गुजगुज भरे तो गाज हावय।3।
बांसुरी डफली मँजीरा बिन सजे गाना बजाना,
रैंप डिस्को थाप बाजा मा कहाँ वो साज हावय।4।
तान सीना देश हित बर जेन ठाढ़े हे सिवाना,
ओखरे खातिर बचे तो देश के गा लाज हावय।5।
दुःख पीरा छोड़ लिखथे जेन कवि पदवी के खातिर,
पावनी साहित धरा बर वो कवि तो खाज हावय ।6।
हाथ मा भाला धराके बेटी ला सिंगार दुर्गा,
खोल बखरी मा तो किँजरत आज कतको बाज हावय ।7।
दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़(छत्तीसगढ़)
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