Total Pageviews

Friday, 4 December 2020

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212  2212


झन कर नशा वोला अबड़ समझाय हे। 

पीये हवय गाँजा तभे भकवाय हे।


ररुहा हवय सपनाय पूड़ी खीर ला। 

पार्टी म जाके वो हकन के खाय हे।


ककरो बिगाड़े नइ कभू हम काम ला।

आफत बता काबर हमर घर आय हे। 


दूषित हवय चारों डहर अब देख ले।

फूलत हवय झिल्ली ल खाये गाय हे। 


आलम गरीबी के दिखत हे राज मा। 

चारों डहर कंगाली भारी छाय हे।


लालच के झउँहा अब कहाँ भरही बता।

कतको धरे हे नोट ला बस हाय हे। 


काँपत हवय हाड़ा ठिठुर गे देह हा।

ये जाड़ आँसों काल बनके आय हे


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...