गज़ल- अजय अमृतांशु
*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
*2122 2122 2122 212*
काय के चिंता हवय सबके सहारा राम हे।
हे करम जेकर बने गा आज ओकर नाम हे।
आज आये हे मिले बर सोंच मा परगे हँवव।
फेर काँही माँगही वो माँगना बस काम हे।
शांति हावय देश मा ये बात ला कइसे कहन ।
रोज के चोरी डकैती होना समझव आम हे। 3
रोज के चूल्हा जलत दाई ददा के छाँव मा।
हम सबो मिलजुल हवन कतका सुहानी शाम हे। 4
बात कलजुग के अनोखा हे समझ लव आज गा।
खून ले जादा तो अब पानी के बाढ़े दाम हे।
कोन जानी काय होवत आजकल अब देश मा।
रोज के हड़ताल भाई सब डहर बस जाम हे।6
आग बरसत हे सुरुज हा कोंन जानी होही का ।
जेठ के महिना सरीखा चरचरावत घाम हे।7
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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