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Tuesday, 15 December 2020

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*



नव के चल तब नाम होही।

अँड़बे ता संग्राम होही।1


पेट भरही भात बासी।

अउ बड़े बादाम होही।2


सोंचबे अउ करबे अच्छा।

मन मुताबिक काम होही।3


काम करबे नित बुरा ता।

बड़ बुरा अंजाम होही।4


नइ रही खेती किसानी।

कोठी का गोदाम होही।5


जब सिराही द्वेष दंगा।

घर गली तब धाम होही।6


राम कहना मानबे ता।

तोरो घर मा राम होही।7


जाड़ मा झन काँप जादा।

धीर धर झट घाम होही।8


कर करम नित खैरझिटिया।

 झट सुबे अउ शाम होही।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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