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Saturday 12 December 2020

गजल- अजय अमृतांशु *बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


फोटका पानी के होथे जिनगी हा तैं जान ले। 

जब कभू अँधियार होथे खुलथे रद्दा ज्ञान ले।


कोन कहिथे काम अड़बड़ हे कठिन मोला बता। 

तै कभू हिम्मत करे हस का बता ईमान ले। 


गाँव टापू बन जथे जी हर बछर बरसात मा।

पाट के दलदल बनाबों पोठ रद्दा ठान ले। 


चार कुदरा मार के थक गे हवस  सिरतो बता।

मेहनत भारी हवय हीरा निकलही खान ले ।


देशवासी मन मगन हे आज सब आजाद हे। 

अब अजय फहरे तिरंगा देख कतका शान ले।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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