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Saturday, 12 December 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़ 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन 


2122  2122  2122  212 

ओढ़ के सुत गे रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 

अब तहूँ ले ले रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 


कँपकपासी लागथे हर दिन पहाती रात के। 

अउ हवय ता दे रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 


डोकरी दाई तको बन मोटरा सुतथे सदा। 

राख के झन से रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 


जे रहे कंजूस ओखर मन तको घबराय गे।

दाम दे लाये रजाई देख बाढ़े जाड़ ला।  


घूमना हे सोंच के आये  हवय शिमला सबो। 

धर सबो लाने रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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