छ्त्तीसगढ़ी गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे रजज मुसद्दस सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212
हिरदै रखे पथरा बरोबर आदमी
गहरा कहाँ उथला बरोबर आदमी
भूले धरम ईमान सत औ नीत ला
होगे रटू तोता बरोबर आदमी
खुद ला समझथे कम कहाँ कोनो इहाँ
नहला उपर दहला बरोबर आदमी
अब्बड़ करय मिहनत तभो छूटय नही
होगे हवय करजा बरोबर आदमी
पाके लमा देथे कभू मौका घलो
मुँह ला अपन हरहा बरोबर आदमी
ज्ञानु
वाह वाह वाह सर 🎉
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