ग़ज़ल--चोवा राम 'बादल'
*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
*2122 2122 2122 212*
मुस्कुराथे चाँदनी घपटे अँधेरी रात मा
सीख कतको मिल जथे अपने ले पाये घात मा
गोठ जादा हे गरम जुड़वा ले थोकुन फूँक ले
जर जही जस चाय खुद के जीभ ताते तात मा
भोग छप्पन के कभू लालच अबिरथा नइ करै
बोध लेथे मन गरीबा हा जुड़ाये भात मा
चल सफर मा संग जाहूँ मोर कहिथस तैं गड़ी
कट जही सिरतो डगर हा तोर गुत्तुर बात मा
पाँच होथे मिलके दू अउ दू कहै अड़ियल अबड़
छूटगे हमरो पसीना वोला तो समझात मा
हे विभीषण सीख देना आजकल तैं छोड़ दे
मार देही कसके तोला वो दशानन लात मा
चुलकिया के झाड़ भाषण नेता देथे जस टरक
तैं कती 'बादल' लुकाये हस भरे बरसात मा
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। वाह वाह
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