गजल- मनीराम साहू
बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212
बइठे हवय वो थापना हे नाम के।
नइहे ठिकाना एकठन जी काम के।
हाँ घूस के हावय जमाना आज कल,
होवय नही कुछ काम हा बिन दाम के।
हावय बतावत काम कतका हे करे,
धर धार निकलत हे पछीना चाम के।
पानी रहे बस होय नइ कुछ जान ले,
नइ पोठ होवय गा फसल बिन घाम के।
बरसात पानी बहि जथे जी फोकटे,
हावय भलाई राख लव कुछ थाम के।
होथे नफा पानी पिये मा जान ले,
भर के रखे जे रात लोटा ताम के।
भव ले तरे बर हे मनी तैं जाप कर,
सबले सरल हे नाम हा श्री राम के।
- मनीराम साहू 'मितान'
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