ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*
*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*
*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*
*2122 2122*
बिन गुरू के ज्ञान भइगे।
माते रण मा म्यान भइगे।1
पाँव उठे नइ थोरको भी।
बात मा ऊड़ान भइगे।2
मैल जमते जाय मन मा।
रात दिन बस स्नान भइगे।3
काँपे खुर्शी देख नेता।
जनता हे हलकान भइगे।4
देश हा कइसे सुधरही।
मंद मा मतदान भइगे।5
भाव कौड़ी के बिकत हे।
आज सत ईमान भइगे।6
आधा तोपाय आधा उघरा।
वाह रे परिधान भइगे।7
का दया अउ का मया अब।
हिरदे हे चट्टान भइगे।8
जाने नइ गुण ज्ञान तेखर।
होत हे गुण गान भइगे।9
तरिया परिया हरिया सब गय।
गोड़ा ना गौठान भइगे।10
मात गेहे बड़ मनुष मन।
का कहौं भगवान भइगे।11
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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