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Saturday 1 August 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा  

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212  212  212  212 

देख तो राह में कोन आवत हवय। 
जे दुपट्टा म मुखड़ा छुपावत हवय। 

छोड़ सुध बुध ल गोपी चले जात हे। 
कोन मधुबन म मुरली बजावत हवय। 

तोर खाँसी ल तो सिर्फ खाँसी कहे। 
मोर खाँसी करोना कहावत हवय। 

काल के बात ला आज तक हे धरे। 
देख कइसे के वो मुँह फुलावत हवय। 

जेन रोटी तको ला चबा नइ सकय। 
तेन कुकरी ल कइसे चबावत हवय।

भाग गे छोड़ के ओ शहर देख ले। 
जब सुने की सिपाही बलावत हवय। 

ताज देखे हजारों लगे भीड़ हे। 
पर ददा के न मरघट ल भावत हवय। 

छेद बादर म होगे हवय लागथे। 
धार मूसल सही ओ गिरावत हवय। 

पान खाके न तँय थूक देबे सखा। 
फैल जाही करोना बतावत हवय। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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