गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
खड़े कहाँ देश आज देखव, फकीर हाथो गुलाम होगे।
विकास के बात भूल जा तैं, गरीब के वोट आम होगे।।
नदी कुँआ सब परे हे सुक्खा, नहर दिखत हे तको पियासा।
कटत हवय रोज पेड़ छइँहा, डगर डगर दुःख घाम होगे।।
करय गुलामी धरम धरे जन, सही गलत के दिशा भुलाये।
करत हवव झूठ वाहवाही, इही मनुज तोर दाम होगे।।
कलम उठा लिख नवा इबादत, दिशा दशा देश मान खातिर।
पता नही कब उगे बिहनिया, करत अगोरा ये शाम होगे।।
कहत हवय हाथ जोड़ पात्रे, अपन समझ जा वजूद भाई।
बढ़े हवय जेन धर बुलंदी, उँखर इँहा आज नाम होगे।।
गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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