छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया
बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212
लगे जोर थोर ढलान बर, बना ले निसेनी मचान बर।
धरे हस खड़ग गा मियान बर, गुरू नइहे फेर गियान बर।
बिना नाम के करे काम कोन, दिखावा बड़ हे चलत इहाँ।
बने पथरा कोन हा नेंव के, मरे मनखे मन सबे मान बर।
सबे फ्रीज के जमे खात हन, त का ताजा के हवे चोचला।
तभो डर समाये हे कार जी, बता बासी चटनी अथान बर।
मुँदे आँख ला धरे हस डहर, उठे हे जिया मा गरब लहर।
मया तोर उरके सियान बर, का करत हवस रे बिहान बर।
गढ़े सपना दूल्हा नवा नवा, चले बेटी बाबू मुड़ी नवा।
उठे माँग हे घड़ी घोड़ा के, ददा धन सकेले टिकान बर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
Total Pageviews
Friday, 28 August 2020
छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
गजल
गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...
-
गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...
-
गजल बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन बहर- 122 122 122 122 घरो घर सफाई ल मजदूर करथे। लिपाई पुताई ल मजदूर करथे। भर...
-
गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़ फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन 212 1212 1212 1212 रोज के...
No comments:
Post a Comment