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Saturday, 1 August 2020

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212  212  212 212

जान ले झूठ मा सच कटावय नही।
पाट कतको समुन्दर पटावय नही।

हाॅ समझबे तभे ये हवय काम के,
ये गणित आय कब्भू रटावय नही।

ऊॅच छानी बनाबे बने सोच के,
खूब पाथे गरेरा खॅटावय नही।

भर बने मोर संगी धरम ताल ला,
पुन्य के जल कभू गा अॅटावय नही।

बात सच ये हवय झट बिसरथे सखा,
ज्ञान जब चार हित मा बॅटावय नही।

आ अभरके उहू पाॅव गड़ही कभू,
जेन काॅटा डगर के हटावय नही।

बात खच्चित हवय कष्ट पाथे नॅगत,
जेन‌ तिसना बढ़ाथे घटावय नही।

साध‌ ले एक ला सब सधाही मनी,
ज्ञान मिझरे ले झटकुन छॅटावय नही।

मनीराम साहू 'मितान'

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