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Saturday 8 August 2020

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला

मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन

1212 212 122 1212 212 122


धरे धरोहर हवय नँदावत, हमर सबो बर सवाल होगे।।

रहय घरो घर मया मितानी, दिखे नही अब दुकाल होगे।।


अपन सुवारथ धरे सबो हे, फिकर कहाँ   दीन पर भलाई।

मगन परे लोभ धन नशा मा, दरद भरे देख हाल होगे।।


नवा बछर के उमंग भारी, करय सुवागत सजा दुवारी।

बड़े बड़े के महल सजे हे, गरीब घर सुख मलाल होगे।।


गजब चलत हे धरम के धंधा, बिछे हवय बड़ कुचक्र भारी।

बने हवय अंध भक्त मनखे, धरम मठाधीस चाल होगे।।


बचा सकस ता बचा अभी ले, बचे खुचे स्वाभिमान पात्रे।

बने सिपाही कलम बढ़े जा, सबो तरफ लूट जाल होगे।।


गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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