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Friday 28 August 2020

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुुुखदेेेव


छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुुुखदेेेव 

बहरे कामिल मुसम्मन सालिम*
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212

दिये हे मजूरी मकाम घर ये शहर नगर ये शहर नगर
ये ल छोड़ नइहे गुजर-बसर ये शहर नगर ये शहर नगर

सुबे देख ए ला के दिन बुड़त के खरे मॅंझनिया के रात के
खड़े रात-दिन हे सम्हर-पखर ये शहर नगर ये शहर नगर

चले डोंगरी के पहाड़ ले के ओ गॉंव टोला दुवार ले
इहाॅं आ थिराथे ग हर डगर ये शहर नगर ये शहर नगर

जे ल लागथे ओ ह जागथे मनोकामना धरे भागथे
इहॉं रात होय न दोपहर ये शहर नगर ये शहर नगर

हरे केन्द्र अन्न के ज्ञान के जघा हर जरूरी समान के
इहॉं मौसमी सबे फूल फर ये शहर नगर ये शहर नगर

ओ रहे सकय नहीं चार दिन पेंड़ी गॉंव मा जुना ठॉंव मा
जे ल ये शहर के परे टकर ये शहर नगर ये शहर नगर

हो'ॲंजोर'जल्दी निराश झन बुता-काम रोज हजार ठन
चिन्ह के हुनर के करे कदर  ये शहर नगर ये शहर नगर

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

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