गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
इँहे सरग अउ नरक इँहे हे, अपन बने तैं करम करे जा।
हँसी खुशी से बिता ले जिनगी, दया धरे मन धरम करे जा।।
मजा उड़ा ले जिया जुड़ा ले, लहुट दुबारा समय न आये।
हवय इहाँ मतलबी जमाना, मिले मरम,झन भरम करे जा।।
उठा कदम अउ बढ़े चले जा, कहाँ मिले हे बिना लड़े कुछ।
मिलय कभू झन डगर निराशा, लहू जिगर ला गरम करे जा।।
बड़ा सुहाथे नजर सबो के, कदर करे जे मया के बोली।
गड़े कभू फाँस बन इही हा, कड़क जुबानी लरम करे जा।।
पड़य कभू झन नजर छुपाना, कहत हवे गोठ नेक पात्रे।
कभू न जीना करे गुलामी, करे कभू ता शरम करे जा।।
गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
सुग्घर रचना
ReplyDelete