छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
रही कहूँ घर के ना ठिकाना, का नींद आही तिंही बताना।
सबे सुनावत रही गा ताना, का नींद आही तिंही बताना।1
मिले मया ममता के ना बोली, दिखे जलत सुख खुशी के होली।
गड़ी घलो चाहही हराना, का नींद आही तिंही बताना।2
बरत रही डोरी गर कँसे बर, कहत रही अउ कहूँ हँसे बर।
अबक तबक दीया हे बुझाना,का नींद आही तिंही बताना।3
चटक मटक मा सबे जमे हे, रतन खजाना मा मन रमे हे।
हवे हवा मा महल बनाना,, का नींद आही तिंही बताना।4
खुशी जुटाके अपन भरोसा, बने करम करबे खाके धोखा।
हुदर हुदर दुख दिही जमाना, का नींद आही तिंही बताना।5
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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